बिहार में रोजगार की स्थिति बेहद चिंता का विषय है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने इस साल फरवरी में एक डाटा जारी की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार बेरोजगारी के मामले में पूरे भारत में बिहार 7 वें स्थान पर है। बिहार में बेरोजगारी की दर 11.5% है। जबकि 95% महिलाएं ऐसी हैं, जिनके पास कोई रोजगार नहीं। सबसे बड़ा सवाल यही है की आखिर क्यों बिहार के युवा राजनीति में तो सबसे आगे हैं लेकिन स्वरोजगार क्षेत्र की भागीदारी में कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं?
बिहार में और बिहार के बाहर बैठा हर शख्स यह जानना चाहता है कि बिहार में रोजगार सृजन के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं? बिहार में स्वरोजगार स्थापना को बढ़ावा देने सरकार द्वारा कौन से कदम उठाए रहे हैं ? बिहार में सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से लोगों की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए क्या कोई सुधार किया गया है ? दुनिया भर को राजनीति का पाठ पढ़ाने वाला बिहार अपनी अर्थशास्त्र में क्यों पिछड़ गया है। बिहार सरकार ने राज्य में निवेश के लिए कई तरह की योजनाए भी शुरू की हैं लेकिन जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का कोई विशेष फ़ायदा होता नहीं दिखाई दे रहा है।
महानगरों के मुकाबले बिहार में उतनी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं जिससे वह निवेशकों को आकर्षित कर सके। वहीं बात करें महानगरों की तो महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है जहां समुद्र होने के कारण यातायात सुविधा बहुत सस्ती है जिस कारण यहां निवेश बहुत अधिक होता है। इसके अलावा बिहार में वो हाईटेक सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं जो दिल्ली और महाराष्ट्र में है। साथ ही बिहार में उद्योग की कमी का एक पहलू यह भी है की बैंको और वित्तीय संस्थानों का रवैया भी बिहार के प्रति ठीक नहीं है। यदि बैंकों से मदद प्राप्त हो तो बिहार 5 से 7 साल में विकसित प्रदेश बन सकता है।
राज्य सरकार भले ही लाख दावे कर रही है कि लोगों को रोजगार के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं है, लेकिन हकीकत इन दावों से बिल्कुल उलट है। नए उद्योग-व्यवसाय लगना तो दूर, पुराने उद्योगों की स्थिति बदहाल हो चुकी है। सरकारी योजनाओं के सहारे केवल सीमित संख्या में ही रोजगार उपलब्ध हो पा रहा है। परिणामस्वरूप प्रवासी मजदूर रोजगार के लिए चिंतित हैं। देशभर में कोरोना की दूसरी लहर के थमते ही एक बार फिर खासकर उत्तरी व पूर्वी बिहार के इलाके से लोगों का पलायन तेज हो गया है।
बिहार में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए यहाँ के युवाओं को स्वरोजगार की ओर बढ़ाना चाहिए। सरकार ने स्वरोजगार स्थापना को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजनाएं शुरू की हैं जिसके तहत सरकार उद्यमियों को वित्तीय सहायता के साथ – साथ ट्रेनिंग भी दे रही है।
नीति आयोग ने एसडीजी इंडिया इंडेक्स जारी किया था। नीति आयोग का एसडीजी इंडिया इंडेक्स रिपोर्ट सभी राज्यों के विकास की जानकारी देती है। इससे पता चलता है कि विकास के पायदान पर कौन सा राज्य विकास के मामले में पिछले साल के मुकाबले कहां तक पहुंचा है। साथ ही यह भी पता चलता है कि पिछले एक साल में उस राज्य ने अलग-अलग क्षेत्रों में कितनी प्रगति की है।
एसडीजी इंडिया इंडेक्स में राज्यों को 16 एसडीजी पैरामीटर्स पर आंका जाता है। इसमें स्कोर 0-100 के बीच होते हैं और अगर कोई राज्य 100 का स्कोर प्राप्त कर लेता है, तो इससे तय होता है कि उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ने 2030 के लक्ष्य हासिल कर लिए हैं। खैर इस विकास के इंडेक्स में सबसे फिसड्डी राज्यों की सूची में 5 प्रदेशों का रिकॉर्ड सामने आये थे। जिसमे बिहार 52 अंकों के साथ विकास की रफ्तार में सबसे पीछे रह गया था।
बिहार में गरीबी सबसे बड़ी समस्या रही है, जो हर वर्ष बढ़ती ही गई है। प्रति व्यक्ति आय के मामले में बिहार तो राष्ट्रीय औसत आय के मुकाबले एक तिहाई का आंकड़ा भी नहीं पा सका है। बिहार में जहां प्रति व्यक्ति आय 31,287 रुपये है, वहीं एक व्यक्ति की राष्ट्रीय स्तर पर आय लगभग 95000 रुपये है। हालांकि 2021 में अकड़ा कुछ हद तक बढ़ा है लेकिन अभी भी राष्ट्रीय आय के मुकाबले बहुत कम है। ये एक ऐसी समस्या है जो कई सालों से जस की तस बानी हुई है।
बिहार से हर साल लाखों विद्यार्थी ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई पूरी कर रहे हैं, लेकिन उनके लिए बिहार में रोजगार के कोई भी अच्छे विकल्प उपलब्ध नहीं हैं। बात करें अगर बिहार की राजधानी पटना की तो यहां एक भी आईटी कंपनी नहीं है, जो उन हजारों बच्चों को प्लेसमेंट दे सकें। जब राजधानी का यह हाल है तो हम बाकी जिलों से क्या उम्मीद कर सकते हैं। उच्च स्तरीय शिक्षा के नाम पर बिहार में क्या है? एक भी विश्वविद्यालय यहां राष्ट्रीय स्तर के नहीं हैं। दिल्ली, बंगलुरु, कोटा, पंजाब और अन्य राज्यों में पढ़ने वाले 20-25 फीसद छात्र बिहार से ही जा रहे हैं, जो तीन से पांच वर्षों में दस लाख से ज्यादा राशि दूसरे प्रदेशों में खर्च करके आते हैं. शिक्षा के क्षेत्र में अगर सही निवेश होता तो यही होता कि बाहर जाने वाला सैंकड़ों करोड़ बिहार में ही रह जाता।
बिहार में मक्के की खेती सबसे अधिक होती है इसके अलावा बिहार सब्जियों का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है। ऐसे में अगर बिहार के युवा चाहें तो यहाँ Food Processing Business शुरू करके लाखो कमा सकते हैं। अभी हाल ही में सरकार ने बिहार के 38 जिलों के खाद्य पदार्थ को एक जिला एक उत्पाद की सूची में शामिल किया है।
एक जानकारी के मुताबिक, बिहार के कई इलाकों में पूरे भारत के 30 प्रतिशत मक्के का उत्पादन हो रहा है। अगर इनके लिए यहीं प्रोसेसिंग यूनिट्स लगा दिए जाते तो हजारों मजदूरों को यहीं रोजगार मिल सकता है। सभी जानते हैं कि मक्के से दर्जनों प्रकार के प्रोसेस्ड फूड बनाए जा सकते हैं। जरूरत है तो सिर्फ प्राथमिकताओं को सही करने की। इसके अलावा बिहार के मुजफ्फरपुर समेत कई जिलों में लीची की जबरदस्त खेती होती है। अगर इन्हीं जिलों में छोटे-छोटे प्रोसेसिंग यूनिट्स लगा दिए जाएं तो लोगों को रोजगार मिलेंगे, किसानों को बेहतर आय मिलेगी और राज्य में नए उद्योग भी स्थापित किये जा सकेंगे। लेकिन जरूरी है कि इनके लिए बाजार उपलब्ध कराया जाए। इसके लिए सबसे पहले बिहार में आधारभूत संरचना विकसित की जाए।
लीची उष्णकटिबंधीय फलों में से एक है जो जिसका उत्पादन बिहार में सबसे अधिक किया जाता है। लीची न सिर्फ खाने में स्वादिष्ट होती है बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी बहुत फायदेमंद होती है। भारत में लीची साल के मध्य में उपलब्ध होनी शुरू हो जाती है। भारतीय बाजारों में लीची की बिक्री अप्रैल के महीने से लेकर जून के अंत तक चलती रहती है। लीची खाद्य और पेय उत्पादन व्यवसाय के लिए आपको सबसे पहले ऐसी भूमि की तलाश करनी होगी जहां से आपको कच्चा माल आसानी से प्राप्त सके। इसके अलावा आपको फलों से रस निकलने और उनसे खाद्य पदार्थ निर्मित करने के लिए कोल्ड स्टोर, फ्रूट वॉशर मिक्सिंग, ब्लेंडिंग आदि मशीनो और उपकरणों की आवश्यकता होगी। इसके आलावा खाद्य पदार्थो की परिवहन के लिए आपको पैकिंग लिस्ट, सर्टिफिकेट ऑफ़ ओरिजिन, शिपिंग बिल आदि जैसे जरुरी दस्तावेजों की आवश्यकता होगी।
उत्तर बिहार के मधुबनी, दरभंगा तथा आस-पास के अन्य जिलों में मखाना की खेती दुनिया की कुल खपत का सबसे बड़ा हिस्सा है। सबसे ज्यादा मखाना की खेती बिहार में ही की जाती है। दुनिया की कुल खपत का 90 प्रतिशत मखाना भारत में पैदा होता है जिसमें से 80 प्रतिशत की भागीदारी उत्तर बिहार के इन्हीं जिलों की है।
बिहार की अर्थव्यवस्था की रिकवरी के साथ निवेश में तेजी लाने के लिए सरकार को सिंगल विंडो सिस्टम की शुरुआत करनी चाहिए। देश के 9 राज्य अब तक सिंगल विंडो सिस्टम से जुड़ चुके है बिहार सरकार को भी बिहार में स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए सिंगल विंडो सिस्टम को मंजूरी देनी चाहिए। सिंगल विंडो सिस्टम के माध्यम से उद्यमियों को उद्योग स्थापना के लिए अलग अलग विभाग से मंजूरी नहीं लेनी होगी। इस सिस्टम के माध्यम से एक ही जगह पर सभी विभाग से आवेदन को मंजूरी मिल जायेगी। इसी तरह प्लेटफार्म से जुड़कर निकायों से भी कारोबार के लिए अलग-अलग मंजूरी नहीं लेनी होगी।
सिंगल विंडो सिस्टम की एक और खासियत है की इसमें किसी भी प्रकार की पूछताछ वीडियो कांफ्रेंसिंग की माध्यम से की जाती है।
इससे बिहार में नए स्टार्टअप को स्थापित करने में पहले की तरह दिक्कतें नहीं उठानी पड़ेंगी। बिहार को निवेश के लिहाज से दुनिया का सबसे पसंदीदा स्थान बनाना है तो सिंगल विंडो इसी दिशा में बढ़ाया गया एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
बिहार में जब उद्योग पालिसी बनाई जाए तब इनसे जुड़े इंडस्ट्रियल लोगों से भी राय ली जानी चाहिए। उद्योग इंडस्ट्री से जुड़े उद्यमी पालिसी से बेहतर तरीके से वाकिफ होते हैं। बिहार में उद्योग नीति बनाने वाली समिति में एक भी व्यक्ति ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होता तो इंडस्ट्री से जुड़े तथ्यों को पूरी तरह से जानता हो। ऐसे में ये समिति केवल आपसी निर्णय के आधार पर ही नीति बनाती है। सरकार को उद्योग व्यवसाय से जुड़े उद्यमियों की भी राय लेनी चाहिए। सरकार को एक ऐसा वेब पोर्टल तैयार करनी चाहिए। इस वेब पोर्टल के माध्यम से उद्यमियों से उनकी राय ली जाने चाहिए।
बिहार में अधिकतर जमींन खेती की है ऐसे में सरकार के सामने यह भी सवाल है की यदि कृषि योग्य भूमि उद्योग को दी जाएगी तो कृषि कैसे होगी। ऐसे में सरकार को आधुनिक और लेयर वाली खेती को बढ़ावा देना चाहिए जिससे कम जमींन होने के बावजूद अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। आधुनिक और लेयर वाली खेती करने से कम जमीन और कम खर्च में किसान खेती कर सकते हैं।
हुक्मरानों की उदासीनता के कारण बिहार में उद्योगों की स्थिति धीरे-धीरे बेहद ही दयनीय स्थिति में चली गई। बिहार में स्वरोजगार की स्थापना के लिए सस्ती दर पर उद्यमियों को जमीन उपलब्ध कराई जानी चाहिए। बिहार में कितनी जमींन हैं जिनका अभी तक आवंटन नहीं किया गया है लेकिन जिन जमीनों का आवंटन किया गया है, उन पर भी स्वरोजगार स्थापित नहीं हो रहे हैं।
बिहार में स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए सख्त कदम उठाए जाने चाहिए जिसके तहत सिंगल विंडो सिस्टम चाहिए जिससे लोगों को क्लीयरेंस के लिए अलग अलग दफ्तरों के चक्कर ना काटने पड़े।
इसके अलावा बिहार में स्वरोजगार स्थापना को बढ़ावा देने के लिए औद्योगिक प्रक्षेत्र (Industrial Farm) की स्थापना की जानी चाहिए।
बिहार में उद्योग ना स्थापित होने के और भी कई कारण है। बाढ़ बरसात में जल जमाव के कारण कई बार उद्योग में उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ता है। कई बार सरकार तो जमींन आवंटित कर देती है, लेकिन उन जमीन पर किसी और का कब्जा होता है। जिससे कई बार मुक़दमे तक होते हैं जिसमे कई साल बीत जाते हैं। बिहार में स्वरोजगार स्थापित करने के लिए सबसे जरूरी है कि यहां उद्यमिता का बेहतर माहौल बने। जिसके तहत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति को संशोधित कर लाने की तैयारी की जानी चाहिए।
बिहार में बढ़ती बेरोजगारी और अव्यवस्था का एक प्रमुख कारण बढ़ती जनसंख्या भी है। राज्य में जिस गति से जनसंख्या बढ़ रही है, रोजगार के अवसर उसी गति से कम होते जा रहे हैं। जनसँख्या वृद्धि दर के मामले में बिहार भारत में पहले नंबर पर आता है जाहिर है इतनी बड़ी आबादी को संभालने के लिए संसाधनों की भी आवश्यकता अधिक है। इसके अलावा जिस राज्य की जनसंख्या सबसे अधिक है विकास की आवश्यकता भी उससे सबसे ज्यादा है। क्योंकि बिहार में रोजगार नहीं है जिस कारण यहां के लाखों लोगों को हर साल पलायन करना पड़ता है। परिवार बड़ा होने के कारण कृषि में भी समस्याएं आती है क्योंकि बटवारे के बाद सभी बच्चों के हिस्से जमीन के छोटे छोटे हिस्से ही आते हैं। ऐसे खेतों पर कृषि भी नहीं की जा सकती और इन्हे बेचना भी बहुत मुश्किल होता है। जिस कारण इन्हें भी मजबूरन कृषि छोड़नी पड़ती है। बढ़ती बेरोजगारी पर नियंत्रण पाने के लिए के लिए राज्य में रोजगार के अवसर बढ़ाने के अलावा बढ़ती जनसंख्या को भी कम करने की आवश्यकता है।
बिहार में मानव संसाधनों की कोई कमी नहीं है और यही कारण है की कई बड़ी कम्पनियाँ यहां निवेश करना चाहती है। लेकिन बुनियादी सुविधाओं और उद्योग नीति बेहतर ना होने के कारण बिहार में नए उद्योग नहीं स्थापित हो पा रहे हैं। ऐसे में बिहार में स्वरोजगार स्थापित करने के लिए यहां के युवाओं को फ़ूड प्रोसेसिंग बिज़नेस करने के बारे में सोचना चाहिए। फ़ूड प्रोसेसिंग बिज़नेस से युवा कम लागत और कम संसाधन में भी बड़ा मुनाफा कमा सकते हैं।
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