बिहार की 80% से अधिक जनसंख्या कृषि और कृषि आधारित कार्यों पर ही निर्भर है। बिहार भारत में सब्जियों का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है। साथ ही चावल, गेहूं, मक्का तथा दलहन के उत्पादन में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। लेकिन बावजूद इसके बिहार की एक बहुत बड़ी आबादी गरीबी रेखा से नीचे अपना जीवन जीने मजबूर हैं। गरीबी की समस्या को जड़ से ख़तम करने के लिए समेकित प्रयासों की जरूरत है। बिहार का सबसे बड़ा कारण है बेरोजगारी।
बिहार में रोजगार की भारी किल्लत है जिसके कारण यहां की एक बड़ी आबादी गरीबी रेखा नीचे है। देखा जाय तो विकास के हर पैमानों में बिहार सबसे निचले पायदान पर है।
बिहार को भौगोलिक रूप से चार हिस्सों में बांटा गया है- दक्षिण बिहार, उत्तर बिहार, मध्य बिहार और सीमाचंल बिहार। इन सब में से कुछ जिले ऐसे हैं, जहां गरीबी चरम पर है। और केवल इतना ही नहीं बल्कि बिहार के 12 जिले Per Capita Production के मामले में पिछड़े हुए हैं।
बिहार के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, मधेपुरा, सुपौल, कैमूर, अरवल, कटिहार, नवादा शिवहर, सीतामढ़ी, मधुबनी, बांका, अररिया और किशनगंज आदि ये सभी जिले Per Capita Production में सबसे ज्यादा पिछड़े हुए हैं।
उत्तरी बिहार के जिलों में गरीबी के कारण लगातार पलायन होता है। विश्व बैंक की एक आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार बिहार के कुछ जिलों में गरीबी चरम सीमा पर है। विश्व बैंक की इस आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के 6 जिलें- सीतामढ़ी, भोजपुर, रोहतास, नालंदा, मुंगेर और जमुई में लगभग 72 प्रतिशत आबाद गरीबी रेखा के नीचे है।
आपको बता दें की ये आंकड़े पिछले 2-3 सालों के नहीं हैं। जानकारों के अनुसार बिहार में दशकों से ऐसी ही स्थिति रही है और इतने सालों में आंकड़ों में सुधार के लिए जो कुछ भी कदम उठाएं जाने थे वो नहीं हो सके। बिहार में सबसे ज्यादा 44.6 प्रतिशत रोजगार कृषि, वन और मत्स्यपालन के क्षेत्र से ही मिलता है, लेकिन इन क्षेत्रों में काम नहीं हुआ। बिहार में सबसे ज्यादा रोजगार कृषि और उससे संबंधित दूसरे क्षेत्र मिलता है। बिहार के GDP का विकास दर तो अच्छा रहा है, लेकिन प्राथमिक क्षेत्र में विकास दर एक प्रतिशत से भी नीचे है। कृषि क्षेत्रों में कोई बड़े काम नहीं किये जा सके हैं। यही वजह है कि हर साल बिहार से भारी तादाद में पलायन होता है।
बिहार में बेरोजगारी लंबे समय से एक बड़ी समस्या रहा है। कोरोना महामारी के कारण हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूरों को घरवापसी करनी पड़ी और बिहार सरकार के सामने इतनी बड़ी आबादी को एक साथ रोजगार मुहैया कराने की चुनौती खड़ी हो गई।
पिछले कुछ महीनों में लॉकडाउन के कारण रोजगार की भारी कमी देखने को मिली है। लोगों के पास रोजगार के कोई दूसरे विकल्प उपलब्ध नहीं थे। रोजगार की तलाश में जिन लोगों ने पलायन किया था, लॉकडाउन के चलते उनके लिए ये रास्ता भी बंद हो गया था। ऐसे में लोगों सरकार के सामने एक बड़ा संकट आ खड़ा हुआ था। शायद यही वजह रही कि इस बार रोजगार का मुद्दा चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा था।
बिहार के मध्य से गंगा नदी प्रवाहित होती है। जिसके उत्तर में उपस्थित उत्तरी बिहार गंगा द्वारा बहा कर लाइ गई उपजाऊ मृदा के कारण कृषि के लिए उत्तम स्थान है।
उत्तर में स्थित हिमालय से निकलने वाली अधिकांश नदियां बिहार में प्रवाहित होते हुए गंगा नदी में मिल जाती हैं। इसके विशेषताओं के साथ साथ इसके कुछ अवगुण भी हैं। जहां एक तरफ ये नदियां अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लाती हैं वही दूसरी तरफ इन नदियों में जल स्तर बढ़ जाने के कारण बाढ़ की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है।
बिहार की कुछ नदियां जैसे की कोसी, कमल, गंडक इत्यादि ऐसी नदियां है जो बिहार में बाढ़ के लिए जानी जाती है इन नदियों के कारण किसानों कि फसलें तबाह हो जाती है। नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि 2014-15 तक बिहार सरकार ने अस्थायी हल के तौर तक़रीबन 3, 745 KM लम्बा तटबंद बनाया है, लेकिन स्थायी हल के लिए कोसी नदी पर सप्ता कोसी डैम बनाये जाने की जरुरत है, बागमती, कमला पर भी ऐसा ही करना पड़ेगा।
अगर उत्तर बिहार को बाढ़ से बचाना है तो नेपाल से बातचीत करके बांध बनाना बहुत जरुरी है, इससे वहां बिजली बनाई जा सकती है और सिंचाई के लिए मदद भी मिल जाएगी। लेकिन इस दिशा में कुछ भी नहीं हो रहा है।
बदलते समय के साथ बिहार के युवा कृषि छोड़कर दूसरे शहरों में नौकरी करना पसंद कर रहे हैं। ज्यादातर अशिक्षित लोग बाहर जाकर दिहाड़ी मजदूरी करने को भी मजबूर हैं। युवाओं की रूचि कृषि से हटती रही है। बिहार में कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार को कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे जिससे युवाओं को कृषि क्षेत्र के प्रति आकर्षित किया जा सके। जिसमे सबसे पहले सरकार को बिहार में आधुनिक कृषि और उद्योग आधारित कृषि को बढ़ावा देना चाहिए। जिससे कम संसाधन में यहां के युवा बड़ा मुनाफा कमा सकेंगे।
भारत में गरीबी दूर करने के लिए सरकारी योजनाओं की कोई कमी नहीं है। बिहार में गरीबी को दूर करने के लिए मनरेगा से लेकर पीडीएस राशन वितरण जैसी सभी सरकारी सहायताओं को बढ़ाया गया है। लेकिन सवाल ये उठता है की इतनी योजनाओं और सरकारी मदद के बावजूद आखिर गरीबी पर नियंत्रण क्यों नहीं पाया जा सका है।
इसका जवाब यह है की बिहार के लोग पलायन पर अधिक विश्वाश करते हैं। यहां की ज्यादातर आबादी स्वरोजगार स्थापित करने के बजाय दूसरे शहरों जाकर नौकरी करना पसंद करते हैं। इसी कारण यहां कि गरीबी दर में बढ़ोत्तरी हुई है। बिहार के शिक्षित युवाओं को बिहार रहकर स्वरोजगार स्थापित करना चाहिए जिससे ना केवल उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होगी बल्कि दूसरे लोगों को भी रोजगार मिल पायेगा।
सरकार द्वारा कई तरह की लोन योजनाएं शुरू की गई हैं। जिसकी सहायता से युवा स्वयं का कोई भी व्यवसाय स्थापित कर सकते हैं। बिहार के युवाओं को इन योजनाओं का लाभ उठाना चाहिए। इन लोन योजनाओं के माध्यम से युवाओं को व्यवसाय स्थापना कठिनाई नहीं होगी।
बिहार में उद्योग स्थापना के लिए बेहतर नीति ना होने के कारण यहां नए उद्योग नहीं स्थापित किये जा रहे हैं। कई बड़ी कम्पनियाँ बिहार में मानव संसाधन की उपलब्धता को देखते हुए यहां निवेश करना चाहती हैं। लेकिन यहां की उद्योग नीति और बुनियादी संसाधनों की कमी के कारण वे ऐसा नहीं कर पाती। सरकार को बिहार में निवेशकों को आकर्षित करने के लिए नई नीति बनानी चाहिए। जिसके तहत उद्योग से जुड़े समृद्ध लोगों की भी राय ली जानी चाहिए। इसके अलावा सरकार को बिहार में इंडस्ट्रियल जोन बनाने के लिए मुफ्त में जमींन भी मुहैया करानी चाहिए। साथ ही टैक्स और GST मुक्त करके भी बड़े स्तर पर निवेशकों को बिहार में लाया जा सकता है।
2016 में नेशन सैंपल सर्वे ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि किसानों की औसत मासिक आय 6,426 रूपए है और सालाना 77,112 रूपए थे आंकड़ा जुलाई 2012 जून से जून 2013 के बीच का है नाबार्ड रिपोर्ट 2016-17 के अनुसार भी किसानों कि मासिक आय 8,931 रूपए है।
केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव 2019 से पहले अपने अंतरिम बजट में PM किसान सम्मान निधि के तहत हर किसान परिवार को 6000 रूपए देने की घोषणा की थी लेकिन किसानों के लिए यह पर्याप्त नहीं है।
अधिकांश कृषक वर्ग इस नए कृषि कानून से परिचित नहीं है। जिसे लेकर हरियाणा पंजाब के किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है।
नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक 91 फीसदी किसान यहां सीमांत किसान है यानी छोटे किसान है ये अपनी एक एकड़ की उपज अन्य राज्यों में लेकर कैसे जाएंगे।
इस तरह राज्य की GDP में कृषि का योगदान लगभग 18-19 फीसद है, जो कि लगातार अपना ग्रोथ रेट खोता दिख रहा है। साल 2005-10 के बीच ये ग्रोथ रेट 5.4 फीसद था, 2010-14 के बीच 3.7 फीसद हुआ और अब 1.2 फीसद के बीच हो गया है।
साल 2008 में Primary Agriculture Cooperative Society[1] यानी Paks का गठन किया ताकि किसानों को राहत मिल सके लेकिन इसमें भी फैले भ्रष्टाचार के कारण किसान अपने फसल को औने पौने दाम पर बिचौलियों को बेचते हैं।
किसानों को समृद्ध बनाने के लिए उन्हें एमएसपी (MSP) का कानूनी अधिकार दिए जाने चाहिए। कानून के तहत कोई उनकी फसल उससे नीचे दाम पर न खरीद सके। अगर कोई खरीदता भी है तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जाए और सरकार या स्वयं वही खरीदार उसकी क्षतिपूर्ति करें। यह कितने अफ़सोस की बात है कि जो किसान बेजोड़ मेहनत करके देश की 130 करोड़ आबादी का पेट भरता है, आज उससे अपनी उपज का सही दाम भी हासिल करने अधिकार नहीं है।
किसानों के केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना चलाई गई है, इसके अलावा बिहार सरकार ने भी अपने राज्य के किसानों के लिए फसल बीमा योजना चला रखी है बावजूद इसके किसानों को इन योजनाओ का लाभ पूरी तरह से नहीं मिल पा रहा है।
कृषि बिहार की रीढ़ है इसका बिहार की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान है। लेकिन सरकार किसानों कि स्थिति के मद्देनजर जो भी योजनाएं चलाती है उनकी वास्तविक पहुंच किसानों तक नहीं होती है।
जिससे किसान या तो कृषि छोड़कर मजदूरी करने पर विवश हो जाते हैं या फिर वे राज्य से पलायन कर अन्य राज्यों में जाकर जीवन निर्वाह करने को मजबुर है। सरकार को कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे राज्य किसानो तक फसल बिमा योजना को पहुंचाया जा सके इसके अलावा किसानों का पलायन रोकने तथा कृषि के प्रति बिहार के युवाओ की रूचि बढ़ाने के लिए सरकार को बिहार में आधुनिक कृषि को भी बढ़ावा देना चाहिए जिसके तहत काम संसाधनों में बड़ी उपज की जा सके।
बिहार में रोजगार स्थापित करने के लिए हमारी संस्था हिन्दराइज फाउंडेशन निरंतर प्रयास कर रही है। हमारी संस्था हिन्दराइज बिहार में किसानों तथा युवाओं को सशक्त बनाने और उन्हें स्वरोजगार स्थापना की और प्रेरित करने के लिए अथक प्रयास कर रही है। जिसके तहत हम युवाओं के कौशल विकास के लिए उन्हें ट्रेनिंग देते है। साथ ही हम उन्हें उनकी लघु उद्योग स्थापना में मदद करते है।
हमारी संस्था हिन्दराइज फाउंडेशन उद्यमियों को स्वयं का लघु व्यवसाय शुरू करने के लिए प्रेरित करती है साथ ही संस्थान द्वारा उन्हें लघु उद्योग स्थापना के लिए ट्रेनिंग भी दी जाती है। इस ट्रेनिंग के अंतर्गत हमारी संस्था महिलाओं को लाइसेंसिंग, छोटे उद्योगों को कैसे संचालित करें, फंड कैसे मैनेज करें और साथ ही टैक्सेशन आदि की जानकारी भी देती है। इसके अलावा हम उद्योग स्थापना के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं साथ ही हम बेरोजगारी से जुडी समस्याओं तथा किसानों से जुड़े जरुरी मुद्दों को सरकार के सामने रखते है।
हिंदराइज फाउंडेशन एक स्वतंत्र संगठन है जो सरकार द्वारा शुरू की गई कई योजनाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने और बढ़ावा देने के लिए एक सहायक स्तंभ के रूप में काम कर रहा है। हम अपने देश के किसानों तथा उद्यमियों के कौशल विकास के लिए शिविरों और कार्यक्रमों की व्यवस्था करने से कभी पीछे नहीं हटते हैं और उन्हें उनके लाभ के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं से अवगत कराते हैं।
हमारी संस्था हिंदराइज फाउंडेशन के माध्यम से हम नवोदित उद्यमियों तथा किसानो को हर संभव सहायता प्रदान कर रहे हैं। हिंदराइज फाउंडेशन में, हम लाभार्थियों को अपनी सलाह और समर्थन देने और पंजीकरण प्रक्रिया के दौरान उनका मार्गदर्शन करने का प्रयास कर रहे हैं।
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