केंद्र सरकार द्वारा पीएम एफएमई स्कीम (PM Formalization of Micro Food Processing Enterprises Scheme)के तहत 38 राज्यों के 707 जिलों के लिए ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ODOP) की लिस्ट को मंजूरी दे दी गई हैं। ‘एक जिला एक उत्पाद’ (One District One Product) स्कीम के अंतर्गत स्वदेशी उद्योग जैसे कि लीची उत्पादन, हथकरघा, खाद्य प्रसंस्करण, वस्त्र उद्योग और परंपरागत उत्पादों को बढ़ावा दिया जाएगा। एक जिला एक उत्पाद योजना के माध्यम से सरकार का उद्देश्य स्वदेशी निर्मित उत्पादों को बढ़ावा देना और छोटे तथा मध्य उद्योग को वित्तय सहायता मुहैया कराकर देश में उद्यमिता की अवधारणा को प्रोत्साहित करना हैं।
इसका आलावा देश के स्टार्टअप इकोसिस्टम में नए स्टार्टअप्स को शामिल करना भी सरकार का मुख्य उद्देश्य हैं। एक जिला एक उत्पाद योजना के जरिये सरकार की मंशा एमएसएमई के तहत स्वदेशी निर्मित उत्पादों को वित्तय सहायता मुहैया कराकर उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता में लाना है।
“एक जिला एक उत्पाद योजना” के अंतर्गत एमएसएमई के तहत बने उत्पादों को इस स्कीम के जरिये वित्तीय सुविधाएं मुहैया करा कर छोटे उद्योगों में तेजी लाई जाएगी.
सरकार द्वारा जारी की गई इस सूची में बिहार के सीतामढ़ी और मुजफ्फरपुर जिला भी शामिल है जो की शाही लीची उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। हर साल यहां शाही लीची की पैदावार काफी अच्छी होती है। आपको बता दे की लीची की दूसरी प्रजातियों के मुकाबले मुजफ्फरपुर की शाही लीची काफी महंगे दामों में बेची जाती है.
“एक जनपद, एक उत्पाद योजना” उत्तर प्रदेश राज्य में सबसे पहले लागू की गई है। इसी क्रम में सरकार ने बिहार के 38 जिलों के उत्पादों को भी ODOP के तहत मंजूरी दे दी है। जिसमें
अररिया का मखाना, अरवल के आम, औरंगाबाद की स्ट्रॉबरी, बांका के कतरनी चावल, बेगूसराय की लाल मिर्च, भागलपुर का जर्दालू आम, भोजपुर के मटर, बक्सर का मेंथा, दरभंगा का मखाना, पूर्वी चंपारण की लीची, गया के मशरूम, गोपालगंज का पपीता, जमुई के कटहल, जहानाबाद के मशरूम, कैमूर के अमरूद, कटिहार का मखाना, खगड़िया का केला, किशनगंज के अनानास, लखीसराय का टमाटर, मधेपुरा के आम, मधुबनी का मखाना, मुंगेर की नींबू घास, मुजफ्फरपुर की लीची, नालंदा के आलू, नवादा का पान का पत्ता, पटना का प्याज, पूर्णिया का केला, रोहतास का टमाटर, सहरसा का मखाना, समस्तीपुर की हल्दी, सारण के टमाटर, शेखपुरा का प्याज, शिवहर के मोरिंगा, सीतामढ़ी की लीची, सीवान का मेंथा या पुदीना, सुपौल का मखाना, वैशाली का शहद और पश्चिमी चंपारण के गन्ने की खेती आदि शामिल हैं।
एक जिला एक उत्पाद योजना के माध्यम से राज्य सरकार का मुख्य उद्देश्य यह है कि हर जिले के विशेष कौशल और उनके विशेष वस्तुओं के उत्पादन को संरक्षित और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विकसित किया जाना चाहिए। ODOP योजना की सहायता से राज्य में रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराए जा सकेंगे जिससे वहां की एक बड़ी आबादी को रोजगार प्राप्त होंगे। ODOP योजना से राज्य के प्रत्येक युवाओं को आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्रदान करेगी। परिणामस्वरूप युवाओं के कौशल विकास के साथ साथ उनका आर्थिक विकास भी होगा। ODOP योजना केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई एक सराहनीय योजना है, इससे युवाओं को तकनिकी प्रशिक्षण प्राप्त होंगे तथा उन्हें रोजगार की तलाश में अपना घर और शहर छोड़कर कही बाहर नहीं जाना पड़ेगा।
भारत के कई राज्यों में लीची का उत्पादन किया जाता है, जिनमें बिहार प्रथम स्थान पर है। बिहार के सीतामढ़ी और मुजफ्फरपुर में सबसे ज्यादा लीची की फसल होती है. मुजफ्फरपुर की शाही लीची दुनिया भर में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। एक आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में कुल 32 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती होती है। जबकि अकेले मुजफ्फरपुर में 11 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती की जाती हैं। बीते वर्ष सूबे में 1000 करोड़ का लीची का व्यवसाय हुआ था। जिसमे मुजफ्फरपुर की 400 करोड़ की भागीदारी थी। बिहार के बाद उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और पंजाब में भी लीची का उत्पादन किया जाता है।
बिहार में दो तरह की लीची की प्रजातियों का उत्पादन ज्यादा देखने को मिलता है. जिसमे उत्तरी हिस्से जैसे दरभंगा, समस्तीपुर, हाजीपुर व मुजफ्फरपुर सहित कई जिलों में शाही लीची की ज्यादा पैदावार होती है. मुजफ्फरपुर की शाही लीची सबसे ज्यादा लोकप्रिय है, इसके फल गोल और बेहद मीठे होते है और इसके छिलके गहरे लाल रंग के होते है। शाही लीची के पेड़ पर दो से तीन साल में फल लगने शुरू हो जाते हैं। इस किस्म के पेड़ से 80 से 100 किलो प्रतिवर्ष की उपज होती है।
लीची दूसरी प्रजाति चाइना है। इस किस्म के फल देर से पकते है और शाही लीची के मुकाबले आकार में छोटे होते हैं। इसका अलावा स्वर्ण रुपा भी एक प्रजाति है, इस प्रजाति का फल बड़ा और मीठा होता है।
भारत के प्रमुख राज्यों में लीची के आगमन का समय कुछ इस प्रकार है।
क्रमांक |
राज्य |
उपलब्धता का समय |
1 |
त्रिपुरा |
15 अप्रैल से लेकर अप्रैल महीने के अंत तक |
2 |
असाम |
1 मई से लेकर मई के तीसरे सप्ताह तक |
3 |
पश्चिम बंगाल |
1 मई से लेकर मई के तीसरे सप्ताह तक |
4 |
बिहार |
मई के तीसरे सप्ताह से जून के दूसरे सप्ताह तक |
5 |
झारखण्ड |
मई के तीसरे सप्ताह से जून के दूसरे सप्ताह तक |
6 |
उत्तराखंड |
जून के दूसरे सप्ताह से लेकर जून महीने के अंत तक |
7 |
पंजाब |
जून के तीसरे सप्ताह से लेकर जून महीने के अंत तक |
8 |
हिमाचल प्रदेश |
जून के तीसरे सप्ताह से लेकर जून महीने के अंत तक |
बिहार के सीतामढ़ी और मुजफ्फरपुर की लीची अपने बेहतरीन स्वाद और मिठास के लिए पूरी दुनिया में लोकप्रिय है, लेकिन पहले के मुकाबले अब लीची के बागान में उपज कम हो रही है और अब नए बागान भी नहीं लगाए जा रहे हैं, जिससे लीची के उत्पादन पर काफी असर हुआ है. सरकार द्वारा शुरू की गई इन योजनाओं के जरिए बिहार के मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, वैशाली और समस्तीपुर जिले में लगभग तीस हजार एकड़ पुराने लीची के बागान को पुनर्जीवित किया जाएगा और नए पेड़ भी लगाए जाएंगे। इसके अलावा एक जिला एक उत्पाद योजना के अंतर्गत किसानों को वित्तय सहायता मुहैया कराकर उन्हें लीची उत्पादन की और प्रोत्साहित किया जाएगा।
लीची उष्णकटिबंधीय फलों में से एक है जो जिसका उत्पादन बिहार में सबसे अधिक किया जाता है। लीची न सिर्फ खाने में स्वादिष्ट होती है बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी बहुत फायदेमंद होती है। भारत में लीची साल के मध्य में उपलब्ध होनी शुरू हो जाती है। भारतीय बाजारों में लीची की बिक्री अप्रैल के महीने से लेकर जून के अंत तक चलती रहती है। लीची खाद्य और पेय उत्पादन व्यवसाय के लिए आपको सबसे पहले ऐसी भूमि की तलाश करनी होगी जहां से आपको कच्चा माल आसानी से प्राप्त सके। इसके अलावा आपको फलों से रस निकलने और उनसे खाद्य पदार्थ निर्मित करने के लिए कोल्ड स्टोर, फ्रूट वॉशर मिक्सिंग, ब्लेंडिंग आदि मशीनो और उपकरणों की आवश्यकता होगी। इसके आलावा खाद्य पदार्थो की परिवहन के लिए आपको पैकिंग लिस्ट, सर्टिफिकेट ऑफ़ ओरिजिन, शिपिंग बिल आदि जैसे जरुरी दस्तावेजों की आवश्यकता होगी।
यदि आप लीची का जूस या कोई भी पेय पदार्थ व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं तो आपके इन् मशीनरी और उपकरणों की आवश्यकता होगी। जो की इस प्रकार है : कोल्ड स्टोर (Cold store), फ्रूट वॉशर (Fruit washer), लीची पीलिंग मशीन (Litchi peeling Machine), ट्विन पल्पर (Twin Pulper), फीड पंप (Feed Pump), शुगर सिरप बनाने वाला टैंक (Sugar Syrup Prearation tank), मिक्सिंग और ब्लेंडिंग टैंक (Mixing/Blending tank), फ़िल्टर प्रेस (Filter press), होमोजेनीज़ेर (Homogenizer), फिलिंग और कैपिंग (Filling & Capping), वेगहिंग बैलेंस (Weighing balance), एक्सेसरीज(Accessories).
लीची पेय पदार्थ व्यवसाय स्थापित करने के लिए एक यूनिट को 70, 80 और 90 प्रतिशत की उत्पादक क्षमता के लिए कम से कम 300, 400 और 500 किलो फलों की आवश्यकता होती हैं।
बिहार में लीची पेय पदार्थ उत्पादन व्यवसाय स्थापित करने में आपको मशीनरी और उपकरणों के लिए लगभग 17 लाख रूपए की आवश्यकता होगी। इसके अलावा फर्नीचर, बिजली, पानी आदि के खर्चों को मिलाकर लगभग 26 लाख तक हो सकती है।
लीची का निर्यात बढ़ाने के लिए सरकार को कुछ जरुरी अपूर्तियो की ओर ध्यान देना होगा। जैसे की लीची की मार्केटिंग, अच्छी पैकिंग जिससे फलों को सड़ने से बचाया जा सके। लीची के व्यवसाय में एक बड़ी समस्या ट्रांसपोर्टेशन भी है। उचित ट्रांसपोर्ट सुविधा उपलब्ध न होने के कारण कई बार फलों को बाजारों तक पहुंचने में देर हो जाती है जिससे किसानो को भारी नुकसान उठाना पड़ता हैं। इस समस्या से उबरने के लिए सरकार को ट्रांसपोर्टेशन पर भी ध्यान देना चाहिए जिससे लीची उचित समय पर भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचाई जा सके।
आज के दौर में बढ़ता शहरीकरण और आय फलों से निर्मित उत्पादों की मार्केटिंग के लिए बहुत बड़ा अवसर प्रदान करती है. लीची से निर्मित पेय और खाद्य पदार्थों की बिक्री के लिए डिपार्टमेंटल स्टोर, मॉल, सुपर मार्केट जैसे शहरी संगठित प्लेटफॉर्म एक आकर्षक मंच हो सकते हैं
भारत में लीची मई महीने से बिक्री के लिए तैयार हो जाती है और मई से लेकर जुलाई महीने तक उपलब्ध रहती है। इस समय अंतर्राष्ट्रीय बाजार में लीची का आभाव रहता है।। इन्ही महीनों में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में लीची का निर्यात करके अच्छा मुनाफा अर्जित किया जा सकता है। इसका एक बड़ा फ़ायदा यह भी है की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारत एक मुख्य निर्यातक के रूप में उभरेगा।
बीते वर्ष कोरोना लॉकडाउन के दौरान देश भर में सभी ट्रेन तथा ट्रांसपोर्ट सुविधाएं बंद कर दी गई थी जिसके कारण समय पर लीची को बिक्री के लिए विक्रेताओं तक नहीं पहुंचाया जा सका और इसी कारण लीची व्यापारियों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा था। हालांकि कई किसानों ने फ़ोन के द्वारा व्यापारियों से संपर्क करके व्यवसाय करने की कोशिश की लेकिन तब भी उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई।
एक जिला एक उत्पाद योजना के माध्यम से केंद्र सरकार का मुख्य उद्देश्य स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देना है। साथ ही राज्यों में निर्मित विशेष उत्पादों को सुरक्षित करके उन्हें प्रोत्साहित करना हैं। इस योजना को शुरू करने के पीछे सरकार की मंशा स्वदेशी निर्मित उत्पादों के खरीद और इस्तेमाल को बढ़ावा देना है।
इस योजना के तहत सरकार दो महत्वपूर्ण पहलुओं पर काम कर रही है- जिसमे पहला है रोजगार सृजन और दूसरा है राज्य में लघु उद्योगों की स्थापना और सुचारू संचालन। हमारा संगठन हिन्दराइज, देश के सभी युवा उद्यमियों एवं महिला उद्यमियों को लघु उद्योग स्थापना के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके साथ ही हम राज्य में लघु उद्योग के उथान के लिए भी निरंतर कार्य कर रहे हैं।
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